साहित्य जगत का अनमोल हीरा मुंशी प्रेमचंद यथार्थवादी लेखन से समाज में जागरूकता का संचार किया - DRS NEWS24 LIVE

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साहित्य जगत का अनमोल हीरा मुंशी प्रेमचंद यथार्थवादी लेखन से समाज में जागरूकता का संचार किया

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वैश्विक स्तरपर आदि अनादि काल से अनेक क्षेत्रों में अनेक अनमोल व्यक्तियों का सृजन हुआ है। स्थितियों परिस्थितियों के अनुसार उनको अनमोल कौशलता उनको विरासत, गॉड गिफ्टेड, अपनी मेहनत, अपने बौद्धिक कौशलता से मिला है, परंतु सबसे महत्वपूर्ण संज्ञान सामान्यतः उस व्यक्तित्व पर लिया जाता है जिसको बिना किसी विरासत, गॉड गिफ्टेड के अपनी मेहनत संघर्ष काबिलियत और बौद्धिक क्षमता के आधार पर सफलताओं के झंडे गाड़कर न सिर्फ अपने कौशलता से अपने उस साहित्यिक या किसी अन्य क्षेत्र से न केवल अपने शहर,राज्य का नाम रोशन किया बल्कि अपने देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत देश की प्रतिष्ठा को भी बढ़ाया ऐसे तो अनेक एक से एक महानुभाव व्यक्तित्व हैं परंतु चूंकि 31 जुलाई को साहित्य जगत के एक तरह से पितामह मुंशी प्रेमचंद की 143 वीं जयंती है इसलिए आज उनकी साहित्य सेवा संघर्ष और बौद्धिक क्षमता पर इस आर्टिकल के माध्यम से इस हिंदी साहित्य जगत के अनमोल नायाब हीरे की चर्चा करेंगे। 
साथियों बात अगर हम इनके व्यक्तित्व और प्रतिष्ठा प्रसिद्धि और शोहरत की करें तो मेरा मानना है कि हर कामकाजी क्षेत्र से सलंग्न मनीषियों में बहुत कम लोग ऐसे होंगे जो इस नाम को नहीं जानते होंगे क्योंकि हम स्कूलों में ही मुंशी प्रेमचंद का संज्ञान पाठ्य पुस्तकों में ले चुके हैं फिर भी हम उनके बारे में कुछ जानकर अपनी यादों को ताजा कर सकते हैं। मुंशी प्रेमचंद (जन्म- 31 जुलाई, 1880 - मृत्यु- 8 अक्टूबर, 1936) भारत के उपन्यास सम्राट माने जाते हैं जिनके युग का विस्तार सन् 1880 से 1936 तक है। यह कालखण्ड भारत के इतिहास में बहुत महत्त्व का है। इस युग में भारत का स्वतंत्रता-संग्राम नई मंज़िलों से गुजरा। प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, जिम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में जब हिन्दी में काम करने की तकनीकी सुविधाएं नहीं थीं फिर भी इतना काम करने वाला लेखक उनके सिवा कोई दूसरा नहीं हुआ।
साथियों बात अगर हम मुंशी प्रेमचंद के साहित्यिक विशेषताओं की करें तो,प्रेमचंद की रचनादृष्टि, विभिन्न साहित्य रूपों में, अभिव्यक्त हुई। वह बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। प्रेमचंद की रचनाओं में तत्कालीन इतिहास बोलता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में जन साधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया। उनकी कृतियां भारत के सर्वाधिक विशाल और विस्तृत वर्ग की कृतियां हैं। अपनी कहानियों से प्रेमचंद मानवस्वभाव की आधारभूत महत्ता पर बल देते हैं।हिंदी कथा-साहित्य को तिलस्मी कहानियों के झुरमुट से निकालकर जीवन के यथार्थ की ओर मोड़कर ले जाने वाले कथाकार मुंशी प्रेमचंद देश ही नहीं, दुनिया में विख्यात हुए और 'कथा सम्राट' कहलाए। उन्‍होंने आमजन की पीड़ा को शब्दों में पिरोया, यही वजह है कि उनकी हर रचना कालजयी है। 
साथियों संस्कृति के श्लोकों में भी आया है, विद्वत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन। स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।। अर्थ एक विद्वान और राजा की कभी कोई तुलना नहीं की जा सकती। क्योंकि राजा तो केवल अपने राज्य में सम्मान पाता है वही एक विद्वान हर जगह सम्मान पाता है। प्रेमचन्‍द के उपन्यास हैं- गबन, बाजार-ए-हुस्न (उर्दू में), सेवा सदन, गोदान, कर्मभूमि, कायाकल्प, मनोरमा, निर्मला, प्रतिज्ञा, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, वरदान प्रेमा और मंगल सूत्र (अपूर्ण) प्रेमचंद्र ने लगभग 300 कहानियां तथा चौदह बड़े उपन्यास लिखे. सन् 1935 में मुंशी जी बहुत बीमार पड़ गए और 8 अक्टूबर 1936 को 56 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया उनके रचे साहित्य का विदेशी सहित लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। प्रेमचंद ऐसे कालजयी उपन्या्सकार थे, जिन्होंने अपनी लेखनी के दम पर पूरे विश्वी में पहचान बनाई। मुंशी प्रेमचंद का व्यक्तित्व बड़ा ही साधारण था। उनके निधन के 87 वर्ष बाद भी उनकी कालजयी रचना ‘कफन’, ‘गबन’, ‘गोदान’, ‘ईदगाह‘ और ‘नमक का दरोगा‘ हर किसी को बचपन की याद दिलाती है।
साथियों बात अगर हम मुंशी प्रेमचंद की धनपत राय श्रीवास्तव से नवाब राय फ़िर प्रेमचंद और फिर मुंशी प्रेमचंद बनने की गाथा की करें तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अनुसार,31 जुलाई 1880 को जन्मे प्रेमचंद एक महान लेखक होने के साथ-साथ आम जनता के लेखक भी हैं। उनका असली नाम धनपत राय लेकिन साहित्य में उनकी ख्याति ने उन्हें प्रेमचंद बना दिया। वे हिंदी के साथ-साथ उर्दू लेखन भी करते थे। उर्दू लेखन में उन्होंने अपना नाम नवाब राय रखा था। धनपत राय के दादा गुरु सहाय राय और पिता अजायब राय दोनों के नाम में मुंशी नहीं था तो फिर उनका नाम मुंशी कैसे पड़ा आइए जानते हैं। हुआ यूं​ कि मशहूर विद्वान और राजनेता कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने महात्मा गांधी की प्रेरणा से प्रेमचंद के साथ मिलकर हिंदी में एक पत्रिका निकाली, नाम रखा गया-’हंस’. यह 1930 की बात है। पत्रिका का संपादन केएम मुंशी और प्रेमचंद दोनों मिलकर किया करते थे। तब तक केएम मुंशी देश की बड़ी हस्ती बन चुके थे, वे कई विषयों के जानकार होने के साथ मशहूर वकील भी थे, उन्होंने गुजराती के साथ हिंदी और अंग्रेजी साहित्य के लिए भी काफी लेखन किया। 
साथियों मुंशी जी उस समय कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता के तौर पर स्थापित हो चुके थे,  वे उम्र में भी प्रेमचंद से करीब सात साल बड़े थे। बताया जाता है कि ऐसे में केएम मुंशी की वरिष्ठता का ख्याल करते हुए तय किया गया कि पत्रिका में उनका नाम प्रेमचंद से पहले लिखा जाएगा। हंस के कवर पृष्ठ पर संपादक के रूप में ‘मुंशी-प्रेमचंद’ का नाम जाने लगा। यह पत्रिका अंग्रेजों के खिलाफ बुद्धिजीवियों का हथियार थी. इसका मूल उद्देश्य देश की विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं पर गहन चिंतन-मनन करना तय किया गया ताकि देश के आमजनमानस को अंग्रेजी राज के विरुद्ध जाग्रत किया जा सके. जाहिर है कि इसमें अंग्रेजी सरकार के गलत कदमों की खुलकर आलोचना होती थी। 
साथियों हंस के काम से अंग्रेजी सरकार महज दो साल में तिलमिला गई,  उसने प्रेस को जब्त करने का आदेश दिया। पत्रिका बीच में कुछ दिनों के लिए बंद हो गई और प्रेमचंद कर्ज में डूब गए। लेकिन लोगों के जेहन में हंस का नाम चढ़ गया और इसके संपादक ‘मुंशी-प्रेमचंद’ भी। स्वतंत्र लेखन में प्रेमचंद उस समय बड़ा नाम बन चुके थे। उनकीकहानियां और उपन्यास लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो चुके थे। वहीं केएम मुंशी गुजरात के रहने वाले थे, कहा जाता है कि राजनेता और बड़े विद्वान होने के बावजूद हिंदी प्रदेश में प्रेमचंद की लोकप्रियता उनसे ज्यादा थी। ऐसे में लोगों को एक बड़ी गलतफहमी हो गई। वे मान बैठे कि प्रेमचंद हीमुंशी-प्रेमचंद हैं। साथियों इस गलतफहमी की वजह शायद यह भी हो सकती है कि उस समय आज की तरह अखबार और मीडिया के विभिन्न माध्यम नहीं थे, इसका एक कारण यह भी था कि अंग्रेजों के प्रतिबंध के चलते इसकी प्रतियां आसानी से उपलब्ध नही रहीं. ऐसे में एक बार जो भूल हुई सो होती चली गई। ज्यादातर लोग नहीं समझ सके कि प्रेमचंद जहां एक व्यक्ति का नाम है, जबकि मुंशी-प्रेमचंद दो लोगों के नाम का संयोग है। साहित्य के ध्रुवतारे प्रेमचंद ने राजनेता मुंशी के नाम को अपने में समेट लिया था, इसे प्रेमचंद की कामयाबी का भी सबूत माना जा सकता है। वक्त के साथ तो वे पहले से भी ज्यादा लोकप्रिय होते चले गए, साथ ही उनके नाम से जुड़ी यह गलतफहमी भी विस्तार पाती चली गई। आज की हालत यह है कि यदि कोई मुंशी का नाम ले ले तो उसके आगे प्रेमचंद का नाम अपने आप ही आ जाता है।प्रेमचंद ने अपने जीवन के कई अदभूत कृतियां लिखी हैं। तब से लेकर आज तक हिन्दी साहित्य में ना ही उनके जैसा कोई हुआ है और ना ही कोई और होगा। अपने जीवन के अंतिम दिनों के एक वर्ष को छोड़कर उनका पूरा समय वाराणसी और लखनऊ में गुजरा, जहां उन्होंने अनेकपत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया और अपना साहित्य-सृजन करते रहे। 
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि मुंशी प्रेमचंद जयंती 31 जुलाई 2022 पर विशेष है।साहित्य जगत का अनमोल नायाब हीरा मुंशी प्रेमचंद जिसने यथार्थवादी लेखन से समाज में जागरूकता का संचार किया। हिंदी साहित्य जगत के मुंशी प्रेमचंद जैसा अनमोल रत्न न कोई हुआ है ना ही कोई होगा।

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