सुरासम्पूर्णकलशँ रूढ़िराप्लूतमेव च | दधाना हस्तपद्माभयं कुष्माँडा शुभदास्तु मे ... - DRS NEWS24 LIVE

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सुरासम्पूर्णकलशँ रूढ़िराप्लूतमेव च | दधाना हस्तपद्माभयं कुष्माँडा शुभदास्तु मे ...

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प्रयागराज :रिपोर्ट रंजन मिश्रा:लालापुर नवरात्री के चौथे दिन देवी को कुष्मांडा के रूप में पूजा जाता है| अपनी मंद हल्की हंसी के द्वारा आण्ड यानी ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कुष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है | जब सृष्टि नहीं थी चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था तब इसी देवी ने अपने हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी | इसलिए इसे सृष्टि की आदि स्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है | इस देवी की आठ भुजाएं हैं इसलिए अष्टभुजा कह लायी उनके साथ हाथों में क्रमसह कमंडल धनुष बाण कमल पुष्प अमृत पूर्ण कलश चक्र तथा गदा है | आठवीं हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है | इस देवी का वाहन सिंह है इन्हें को कुम्हढे की बलि प्रिय है इसीलिए इस देविका का कुष्मांडा नाम पड़ा | इस देवी का बास सौरमंडल के भीतर लोक मे है | सूर्य लोक में रहने की शक्ति छमता केवल इन्ही मे है | इसलिए इनके शरीर की क्रांति और प्रभा सूर्य की भांति ही daidi दयदीप मान है | इनके ही तेज से दसों दिशाएं अलोकित है | ब्रह्मांड की सभी वस्तुएं और प्राडियो मे इन्ही का तेज व्याप्त है | चंचल और पवित्र मनसे इस देवी की नवरात्रि में चौथे दिन  पूजा करनी चाहिए | इससे भक्तों के रोगों और शोको का नाश होता है | यह देवी अत्यल्प सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न हो कर आशीर्वाद देती है | सच्चे मन से पूजा करने वालों को सुगमता से परम पद प्राप्त होता है|
डीआरएस न्यूज़ नेटवर्क

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