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आप सल. की तसरीफ आवरी ने कुफ्र व जलालत के अंधेरे में ऐक नूर की किरण जलाई

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    सीतापुर।रिपोर्ट राकेश पाण्डेय: माहे रबी-उल-अव्वल इस्लामी कैलेंडर के एतबार से चांद का तीसरा महीना है। इस महीने की अजमत व फजीलत अपनी जगह एक हकीकत है कि इस महीने में हमारे आका व मौला सरकार दो आलम इमाम-उल-अंबिया अब्दुल मुत्तलिब के प्यारे आमिना के दुलारे अब्दुल्ला के लखते जिगर ताजदार ए हरमैन हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की विलादत ब सआदत हुई। इसलिए इस महीने को बरकत और फजीलत वाला महीना कहा जाता है।  
    रबी-उल-अव्वल के माना बहार के आते हैं। आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की बेशत यानी दुनिया में आने से कबल दुनिया की क्या हालत थी और दुनिया किधर जा रही थी। इंसान ने खुद को बनी नोइंसान के मुख्तलिफ तबकात में बांट रखा था। जिसमें चंद अफराद जो ताकत और वसाएलऐ जिंदगी के सहारे बड़े बन जाते थे और दूसरों को गुलाम ही नहीं गुलामों से बदतर काम नहीं लेते थे बल्कि अपनी तफरीहात के लिए जुल्म के साथ इस्तेमाल करते थे। अपने जश्न और दावत की महफिलों में उनको फुलझड़ी की तरह जलाकर तफरीह का सामान बनाते और जानवरों से कुश्ती कराते और उसके शिकस्त खाकर मरने की हालत को बड़े शौक और दिलचस्पी से देखते थे। औरत को सिर्फ ऐश का सामान और जरिया समझा जाता था और उसकी खातिर और इज्जत सिर्फ उसी लिहाज से होती थी।
  इसके अलावा भी उसको मर्दों के मुकाबले में पस्त और ना पसंदीदा समझा जाता। वह अपने मां बाप के घर में भाइयों के मुकाबले कमतर समझी जाती लोग लड़कियों की पैदाइश को ऐब समझते उन्हें जिंदा दफन करने पर फख्र महसूस करते शादी के बाद उसका ताल्लुक अपने मां बाप के घर से खत्म हो जाता। मीराष में भी उसको हिस्सा नहीं मिलता वह सिर्फ भाइयों का होता शोहर के मरने के बाद उसकी मिट्टी और भी पलीद हो जाती।
   आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम तशरीफ लाए तो गुलामों और औरतों को उनका हक दिलाया और उनको उसी तरह मुअज्जज और हकदार इंसान करार दिया। फिर जिस तरह इंसानों के दूसरे तबकात हैं आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने साफ एलान फरमाया कि देखो तुम सब एक इंसान आदम अलैहिस्सलाम की औलाद हो तुम सब बराबर हो गोरे हो या काले अरब हो या गैर अरब कोई किसी से बड़ा छोटा नहीं हां नेकी और खुदा तरसी में आदमी बड़ा हो सकता है। फिर आप सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम ने इस पर अमल करवाया और खुद भी किया और दुनिया को दिखा दिया कि इंसानों की आपस में मुसावात बराबरी कैसी होती है। ईरान के सलमान फारसी अफ्रीका के बिलाल हब्शी रूम के सुहेब रूमी रजि अल्लाहु अन्हूम को अपने साथ इस तरह रखा जिस तरह अपने खानदान के लोगों को रखते हैं। औरत के हुकूक को अदा करने का सख्त हुक्म दिया मीराष मैं भी उनका हक रखा शादी हो जाने के बाद उसके मां-बाप को उसकी फिक्र और ख्याल रखने का हुक्म दिया और सोहर को अपनी ताकत के मुताबिक जिंदगी की ज़रूरियात मुहैया करने का हुक्म दिया उनकी दौलत में उनका हक मुकर्रर कर दिया। किसी का माल नाहक लेने किसी की इज्जत को नुकसान पहुंचाने किसी की जान नाहक लेने को हराम करार दिया और इन बातों और इनके अलावा बहुत सी बातों का सिर्फ हुक्म नहीं दिया बल्कि उन पर अमल करने वाला पूरा मुआशरा तैयार करके दिया। हक के लिए जान देने वाला हक के लिए बड़ी से की कुर्बानी से दरैग न करने वाला हर मामले में पूरे इंसाफ के साथ काम करने वाला बेगुनाह और कमजोर की रियायत करने वाला फिर चाहे वह गैर मुस्लिम क्यों ना हो जानवरों पर रहम दिली करने वाला था। हक की तबलीग और इस्लाम की नसर व इशाअत में हमदर्दी और रहेम दिली का रवैया रखने वाला मां-बाप के साथ अच्छा सुलूक करने वाला पड़ोसी और जिसके जो हुकूक इस्लामी शरीयत में बताए गए उनके हुकूक अदा करने वाला !

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