बिस्मिल जयंती, सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है।
जिनके राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता था, ऐसे सर्वशक्तिमान ब्रिटिश सत्ता के बाजूओं की ताकत को अपने दिल की तमन्ना से आजमाने की ख्वाहिश करने वाली, इन कालजयी पंक्तियों के अमर रचयिता पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 (जेष्ठ शुक्ल एकादशी जो निर्जला एकादशी के नाम से जानी जाती है) को शाहजहांपुर के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ।
तत्कालीन भारत के नव युवकों में क्रांतिकारी भावना के बीजारोपण का कार्य पंडित राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा रचित क्रांतिकारी साहित्य (उनके जीवन काल में 11 पुस्तकें प्रकाशित हुई थी जिनमें से अधिकांश British Raj द्वारा जब कर ली गई थी) और वैचारिक दृढता द्वारा किया गया। उन्हें हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला, उर्दू, सहित अनेक भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। वह एक उत्कृष्ट कवि, शायर, अनुवादक, बहु भाषा भाषी इतिहासकार व साहित्यकार थे। उर्दू लेखन में उनका उपनाम (तखल्लुस) "बिस्मिल" था, जिसका अर्थ है "आत्मिक रूप से आहत" बिस्मिल के अतिरिक्त वे "राम" और "अज्ञात" उपनाम से भी लिखते थे।
मैनपुरी षडयंत्र केस में सम्मिलित होने के बावजूद भूमिगत होने के कारण उन्हें सजा नहीं हुई। परंतु काकोरी कांड में उन्हें मृत्युदंड से दंडित किया गया। उन्होंने अपने केस की पैरवी स्वयं की थी। किंग एंपरर vs राम प्रसाद बिस्मिल एंड अदर्स के ऐतिहासिक मुकदमे में, जो लखनऊ के वर्तमान जीपीओ के पूर्व वर्ती भवन रिंग थिएटर में चलाया गया, बिस्मिल की अकाट्य तर्क क्षमता को देखते हुए चीफ जस्टिस लुईस शर्टस द्वारा आश्चर्य प्रकट करते हुए यह पूछने पर कि "आप ने किस विश्वविद्यालय से लॉ की डिग्री ली है?" पर बिस्मिल ने उत्तर दिया "क्षमा करें महोदय सम्राट बनाने वाले को किसी डिग्री की आवश्यकता नहीं होती" का उत्तर दिया। इससे कुपित होकर उनके स्वयं की पैरवी करने के अधिकार को जज ने समाप्त कर दिया था।फिर उन्होंने अपने केस की अत्यंत सारगर्भित एवं तार्किक लिखित दलील पेश की थी।
मात्र 30 वर्ष की आयु में 19 दिसंबर 1927 (पौष कृष्ण एकादशी सफला एकादशी) की प्रातः काल गोरखपुर जेल में फांसी की सजा दी गई।
अपनी अंतिम सांस तक भारत के स्वाधीनता संग्राम में क्रांतिकारी विचारधारा के अनुरूप हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन सहित अनेक संगठनों का गठन एवं क्रांतिकारी गतिविधियों का नेतृत्व करने वाले अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल का उनकी जन्म जयंती पर आदर पूर्वक स्मरण करते हुए समस्त भारतवासी अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
जिनके राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता था, ऐसे सर्वशक्तिमान ब्रिटिश सत्ता के बाजूओं की ताकत को अपने दिल की तमन्ना से आजमाने की ख्वाहिश करने वाली, इन कालजयी पंक्तियों के अमर रचयिता पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 (जेष्ठ शुक्ल एकादशी जो निर्जला एकादशी के नाम से जानी जाती है) को शाहजहांपुर के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ।
तत्कालीन भारत के नव युवकों में क्रांतिकारी भावना के बीजारोपण का कार्य पंडित राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा रचित क्रांतिकारी साहित्य (उनके जीवन काल में 11 पुस्तकें प्रकाशित हुई थी जिनमें से अधिकांश British Raj द्वारा जब कर ली गई थी) और वैचारिक दृढता द्वारा किया गया। उन्हें हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला, उर्दू, सहित अनेक भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। वह एक उत्कृष्ट कवि, शायर, अनुवादक, बहु भाषा भाषी इतिहासकार व साहित्यकार थे। उर्दू लेखन में उनका उपनाम (तखल्लुस) "बिस्मिल" था, जिसका अर्थ है "आत्मिक रूप से आहत" बिस्मिल के अतिरिक्त वे "राम" और "अज्ञात" उपनाम से भी लिखते थे।
मैनपुरी षडयंत्र केस में सम्मिलित होने के बावजूद भूमिगत होने के कारण उन्हें सजा नहीं हुई। परंतु काकोरी कांड में उन्हें मृत्युदंड से दंडित किया गया। उन्होंने अपने केस की पैरवी स्वयं की थी। किंग एंपरर vs राम प्रसाद बिस्मिल एंड अदर्स के ऐतिहासिक मुकदमे में, जो लखनऊ के वर्तमान जीपीओ के पूर्व वर्ती भवन रिंग थिएटर में चलाया गया, बिस्मिल की अकाट्य तर्क क्षमता को देखते हुए चीफ जस्टिस लुईस शर्टस द्वारा आश्चर्य प्रकट करते हुए यह पूछने पर कि "आप ने किस विश्वविद्यालय से लॉ की डिग्री ली है?" पर बिस्मिल ने उत्तर दिया "क्षमा करें महोदय सम्राट बनाने वाले को किसी डिग्री की आवश्यकता नहीं होती" का उत्तर दिया। इससे कुपित होकर उनके स्वयं की पैरवी करने के अधिकार को जज ने समाप्त कर दिया था।फिर उन्होंने अपने केस की अत्यंत सारगर्भित एवं तार्किक लिखित दलील पेश की थी।
मात्र 30 वर्ष की आयु में 19 दिसंबर 1927 (पौष कृष्ण एकादशी सफला एकादशी) की प्रातः काल गोरखपुर जेल में फांसी की सजा दी गई।
अपनी अंतिम सांस तक भारत के स्वाधीनता संग्राम में क्रांतिकारी विचारधारा के अनुरूप हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन सहित अनेक संगठनों का गठन एवं क्रांतिकारी गतिविधियों का नेतृत्व करने वाले अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल का उनकी जन्म जयंती पर आदर पूर्वक स्मरण करते हुए समस्त भारतवासी अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
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