कौशाम्बी इस्लाम में जो त्यौहार सबसे खास और प्रमुख हैं उन में एक खास त्यौहार बकरा ईद है. बकरा ईद को ईद उल अजहा के नाम से भी जाना जाता है. मीठी ईद के बाद मुसलमानों का यह सबसे प्रमुख त्यौहार होता है. इसमें हर वो मुसमान जिसपर क़ुरबानी वाजिब (ज़रूरी)है वो अल्लाह ताला को खुश रखने के लिए कुर्बानी अदा करता है. कुर्बानी का प्रतीक कहा जाने वाला यह त्यौहार बकरे की कुर्बानी के साथ-साथ तमाम बुराइयों को भी त्यागने का संदेश देता है.
शहर क़ाज़ी कौशाम्बी मुफ़्ती खुशनूद आलम एहसानी साहब के पुत्र हज़रत मौलाना मुहम्मद मियां क़ादरी बताते हैं कि मुस्लिम ग्रंथ के अनुसार बकरा ईद के दिन जो क़ुरबानी की जाती है इसके पीछे की कहानी यह है कि हज़रत इब्राहिम जो की अल्लाह के महान पैगंबर थे काफी आयु बीत जाने के बाद उनके घर एक बेटे का जन्म हुवा जिसका नाम उन्होंने हज़रत इस्माईल रखा हज़रत इब्राहीम अपने बेटे हज़रत इस्माईल से बहुत प्यार करते थे जब फ़रिशतों ने ये देखा तो अल्लाह पाक से कहने लगे की इब्राहीम तो सबसे ज़्यादा मुहब्बत तुझ से करते थे लेकिन अब तो वो अपने बेटे इस्माईल से भी मुहब्बत करने लगे हैं तो अल्लाह तआला ने फरिश्तों को ये दिखाने के लिए की इब्राहीम सबसे ज़्यादा मुझ से ही मुहब्बत करते हैं और हमारे लिए अपने बेटे इस्माइल को भी क़ुर्बान कर सकते हैं इसी कारण अल्लाह ने आदेश दिया था कि वो अपने बेटे हज़रत इस्माइल को कुर्बान कर दें। हज़रत इब्राहिम ने अल्लाह का यह हुक्म माना और अपने बेटे से राय ली हज़रत इस्माइल ने कहा की अब्बा जान आप अल्लाह के हुक्म का पालन करें और अपनी आँखों में पट्टी बाँध कर हमे ज़बह कर दें इसके बाद हज़रत इब्राहीम ने आँख में पट्टी बांध कर हज़रत इस्माइल पर छुरी चला दी हालांकि, जब हज़रत इब्राहिम कुर्बानी दे रहे थे तब ही जन्नत से हज़रत जिब्राईल अलैहिस सलाम जो फरिश्तों के सरदार हैं जन्नत से एक दुम्बा (भेड़) लेकर आए और हज़रत इस्माइल को हटा कर उनके स्थान पर उस दुंबे को रख दिया और दुंबा कुर्बान हो गया। हज़रत इब्राहीम ने जब आँख से पट्टी खोली तो देखा की हज़रत इस्माईल खड़े मुस्कुरा रहे हैं और दुंबा ज़बह हो गया इस तरह से फरिश्तों ने देख भी लिया और हज़रत इब्राहीम ने साबित भी कर दिया की हम अल्लाह के लिए अपनी सबसे प्यारी चीज़ अपने बेटे इस्माइल को भी क़ुर्बान कर सकते हैं अल्लाह पाक को हज़रत्त इब्राहीम की ये अदा इतनी पसंद आई की इसे मुसलमानों पर ज़रूरी कर दिया ताकि हर साल हज़रत इब्राहीम की याद ताज़ा होती रहे यही वजह है की इस दिन कुर्बानी दी जाती है।
मौलाना मुहम्मद मियां क़ादरी बताते हैं कि इस महीना को ज़िल हिज्जा का महीना कहते हैं इस महीने की दस ग्यारह और बारह तारीख को यानि इन तीन दिनों में किसी भी दिन क़ुरबानी की जा सकती है ईदउल-अजहा की खासियत यह भी है कि मुस्लिम समुदाय में होने वाला हज भी इसी दौरान होता है जिस में हाजी मक्का मदीना जाते हैं और वहां का दर्शन करते हैं और अपना हज पूरा करते हैं जो की इस्लाम के स्तँभ में से एक है मौलाना मुहम्मद मियां क़ादरी ने अपील करते हुए कहा है की क़ुरबानी खुली जगह ना करें और न ही उसकी फोटो वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर अपलोड करें साफ़ सफाई का ख़ास ख्याल रखें और गरीबों की मदद करें और सदक़ा करे
शहर क़ाज़ी कौशाम्बी मुफ़्ती खुशनूद आलम एहसानी साहब के पुत्र हज़रत मौलाना मुहम्मद मियां क़ादरी बताते हैं कि मुस्लिम ग्रंथ के अनुसार बकरा ईद के दिन जो क़ुरबानी की जाती है इसके पीछे की कहानी यह है कि हज़रत इब्राहिम जो की अल्लाह के महान पैगंबर थे काफी आयु बीत जाने के बाद उनके घर एक बेटे का जन्म हुवा जिसका नाम उन्होंने हज़रत इस्माईल रखा हज़रत इब्राहीम अपने बेटे हज़रत इस्माईल से बहुत प्यार करते थे जब फ़रिशतों ने ये देखा तो अल्लाह पाक से कहने लगे की इब्राहीम तो सबसे ज़्यादा मुहब्बत तुझ से करते थे लेकिन अब तो वो अपने बेटे इस्माईल से भी मुहब्बत करने लगे हैं तो अल्लाह तआला ने फरिश्तों को ये दिखाने के लिए की इब्राहीम सबसे ज़्यादा मुझ से ही मुहब्बत करते हैं और हमारे लिए अपने बेटे इस्माइल को भी क़ुर्बान कर सकते हैं इसी कारण अल्लाह ने आदेश दिया था कि वो अपने बेटे हज़रत इस्माइल को कुर्बान कर दें। हज़रत इब्राहिम ने अल्लाह का यह हुक्म माना और अपने बेटे से राय ली हज़रत इस्माइल ने कहा की अब्बा जान आप अल्लाह के हुक्म का पालन करें और अपनी आँखों में पट्टी बाँध कर हमे ज़बह कर दें इसके बाद हज़रत इब्राहीम ने आँख में पट्टी बांध कर हज़रत इस्माइल पर छुरी चला दी हालांकि, जब हज़रत इब्राहिम कुर्बानी दे रहे थे तब ही जन्नत से हज़रत जिब्राईल अलैहिस सलाम जो फरिश्तों के सरदार हैं जन्नत से एक दुम्बा (भेड़) लेकर आए और हज़रत इस्माइल को हटा कर उनके स्थान पर उस दुंबे को रख दिया और दुंबा कुर्बान हो गया। हज़रत इब्राहीम ने जब आँख से पट्टी खोली तो देखा की हज़रत इस्माईल खड़े मुस्कुरा रहे हैं और दुंबा ज़बह हो गया इस तरह से फरिश्तों ने देख भी लिया और हज़रत इब्राहीम ने साबित भी कर दिया की हम अल्लाह के लिए अपनी सबसे प्यारी चीज़ अपने बेटे इस्माइल को भी क़ुर्बान कर सकते हैं अल्लाह पाक को हज़रत्त इब्राहीम की ये अदा इतनी पसंद आई की इसे मुसलमानों पर ज़रूरी कर दिया ताकि हर साल हज़रत इब्राहीम की याद ताज़ा होती रहे यही वजह है की इस दिन कुर्बानी दी जाती है।
मौलाना मुहम्मद मियां क़ादरी बताते हैं कि इस महीना को ज़िल हिज्जा का महीना कहते हैं इस महीने की दस ग्यारह और बारह तारीख को यानि इन तीन दिनों में किसी भी दिन क़ुरबानी की जा सकती है ईदउल-अजहा की खासियत यह भी है कि मुस्लिम समुदाय में होने वाला हज भी इसी दौरान होता है जिस में हाजी मक्का मदीना जाते हैं और वहां का दर्शन करते हैं और अपना हज पूरा करते हैं जो की इस्लाम के स्तँभ में से एक है मौलाना मुहम्मद मियां क़ादरी ने अपील करते हुए कहा है की क़ुरबानी खुली जगह ना करें और न ही उसकी फोटो वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर अपलोड करें साफ़ सफाई का ख़ास ख्याल रखें और गरीबों की मदद करें और सदक़ा करे
No comments:
Post a Comment