बहराइच:रिपोर्ट फिरदौस आलम: टीबी मुक्त तराई को लेकर चलाए जा रहे अभियान के सुखद परिणाम सामने आ रहे हैं। 40 फीसद ऐसे टीबी मरीजों को इलाज मिल पाया है, जो लोकलाज की वजह से अवसाद का शिकार हो चुके थे, लेकिन अब नियमित इलाज व परिजनों की देखभाल से बीमारी को मात देने में सफल हो गए हैं।इनमें कैसरगंज तहसील इलाके के रहने वाले 30 वर्षीय आनंद भी हैं, जो टीबी की वजह से आत्महत्या करने की सोच चुके थे, जो पूरी तरह टीबी को मात देकर स्वस्थ हो चुके हैं।
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. एमएल वर्मा बताते हैं कि आंकड़े के अनुसार 40 फीसदी ऐसे टीबी मरीज हैं जो लांक्षन लगने या सामाजिक भेदभाव की वजह से जांच व इलाज से परहेज करते हैं। इसकी वजह से इलाज में देरी हो जाती है। जिससे वे टीबी के साथ अवसाद रोग का भी शिकार हो जाते हैं। ऐसे टीबी मरीज जिनका इलाज नहीं चल रहा है, उनके साथ लंबे समय तक या अक्सर शारीरिक निकटता होने पर ही टीबी एक- दूसरे में फैलती है। इसलिए टीबी मरीज से न तो भेदभाव करना चाहिए न ही इस बीमारी को लेकर घबराना चाहिए। इस बीमारी की अच्छी बात यह है कि पूरी तरह ठीक की जा सकती है। आनंद माता-पिता और तीन शादी-शुदा बड़े भाइयों के साथ संयुक्त परिवार में रहते हैं।तकरीबन डेढ़ साल पहले उन्हें टीबी की वजह से शरीर में गिल्टियों के साथ कई फोड़े निकल आए थे। इसका जिक्र उन्होंने माता- पिता से भी नहीं किया था। इस वजह से घर के लोग इसे सामान्य त्वचा संक्रमण समझते थे। करीब एक माह टीबी के इलाज के बाद भी जब फोड़ों से मवाद बहना बंद नहीं हुआ तो उन्हें लगा कि यह टीबी नहीं कैंसर है। आनंद बताते हैं कि मैं अपनी दर्दनाक स्थिति के बारे में सोंच कर डर गया, और दवाओं को बंद कर आत्महत्या करने का विचार बनाया, लेकिन टीबी चैंपियन अभिषेक वर्मा से मिलने के बाद जांच कराई। जिसमें एक्सट्रा प्ल्मोनरी टीबी की पुष्टि हुई। इलाज शुरू करने के बाद अब वह पूरी तरह से ठीक हो चुके हैं।
डीआरएस न्यूज नेटवर्क बहराइच
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