सीतापुर। रिपोर्ट राकेश पाण्डेय:जिले की नगर पंचायत हरगाँव से महज डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर परशड़ा शरीफपुर गांव में प्राचीन शन्नो देवी मंदिर स्थित है जो अपने आप में महाभारत कालीन इतिहास समेटे हुए है। यहां प्राचीन शन्नो देवी मन्दिर एवं शमी वृक्ष वर्तमान समय में भी विद्यमान है , जिस पर क्षेत्र के श्रद्धालुओं की अगाध श्रृद्धा है इस
मन्दिर परिसर में वर्ष भर अन्नप्राशन , मुंडन संस्कार एवं धार्मिक अनुष्ठान होते रहते हैँ।इस मन्दिर में माता रानी की महाभारतकालीन मूर्ति स्थापित है।
इस मन्दिर के वर्तमान पुजारी रामस्वरूप ने बताया कि प्राचीन काल में इस गाँव का नाम 'पांडवसर' था लेकिन अपभ्रंशित होते-होते वर्तमान समय में परशड़ा एवं परसेहरा शरीफ पुर कहा जाने लगा।जनश्रुतियों के अनुसार जुएं में सब-कुछ हारने के बाद जब पांडवों को बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास हुआ था तब पांडवों ने अपने अज्ञातवास का समय राजा विराट की नगरी विराटपुरी में बिताया था जिसको लोग वर्तमान समय में हरगाँव के नाम से जानते हैं।प्रसिद्ध माँ शन्नो देवी मन्दिर के साथ ही वहां से कुछ दूरी पर ही महा भारत कालीन शमी का वृक्ष भी है। कहा जाता है इसी वृक्ष पर अज्ञातवास के समय अर्जुन ने अपना धनुष गांडीव तथा पांडवों ने अपने अस्त्र-शस्त्रों को छुपाया था। बताते हैं कि इस वृक्ष की विशेषता है कि इसकी छाया एक ही दिशा में रहती है सूर्य चाहे जिस दिशा में हो।
ज्ञातव्य हो कि सूर्यदेव की पत्नी संज्ञा देवी अपने पति का तेज सहन न कर पाने के कारण अपने शरीर की छाया से अपने समान एक देवी को उत्पन्न किया जो छाया देवी कहलाई।इसके बाद अपने पुत्र यम और पुत्री यमी (यमुना) को सूर्यलोक में छोड़कर तपस्या हेतु चली गयी।कालांतर में सूर्यदेव तथा छाया देवी से शनिदेव का जन्म हुआ।शनि देव की माँ होने के कारण इनका एक नाम शन्नो देवी भी है !
माँ शन्नो देवी के सातों वार अलग- अलग स्वरूप होते हैं लेकिन विशेषत: शनिवार के दिन भक्त शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए और शनि दोष के निवारण के लिए मां शन्नो देवी को पूजते हैं।
मन्दिर के पुजारी ने बताया कि पांडव अपने अज्ञातवास के समय अपना राज्य पाने के लिए प्रतिदिन इनकी पूजा करते थे।द्रोपदी अज्ञातवास के समय जब राजा विराट की रानी सुदेष्णा की सेवा में थी तो प्रतिदिन उनके साथ इनकी आराधना करने आती थी। एक दिन जब वह वापस लौट रहीं थी तभी कीचक नामक राक्षस की कुदृष्टि उन पर पड़ी,और वह कामांध हो गया था जिस कारण भीम ने उसका वध करके जमीन में दबा दिया था, यह स्थान भी हरगांव में स्थित है और लोग उसे आज दानव टिल्ला नाम से जानते हैं।
मंत्र
ॐ शन्नो देवी रभिष्टय आपो भवन्तु पीपतये शनयो रविस्र वन्तुनः।
उपरोक्त मंत्र से भी शन्नो देवी की प्रमाणिकता सिद्ध होती है।मान्यता है कि इस मंत्र का जाप करने से शनि की साढ़े साती का बुरा प्रभाव कम हो जाता है। इसके अलावा नगर पंचायत हरगांव के क्षेत्र में प्राचीन सूर्यकुंड तीर्थ एवं गौरीशंकर भगवान भोले नाथ का सिद्धि प्राप्त स्थान है जो लोगों की आस्था का केंद्र बिंदु बना हुआ है।
दैनिक राष्ट्रसाक्षी
इस मन्दिर के वर्तमान पुजारी रामस्वरूप ने बताया कि प्राचीन काल में इस गाँव का नाम 'पांडवसर' था लेकिन अपभ्रंशित होते-होते वर्तमान समय में परशड़ा एवं परसेहरा शरीफ पुर कहा जाने लगा।जनश्रुतियों के अनुसार जुएं में सब-कुछ हारने के बाद जब पांडवों को बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास हुआ था तब पांडवों ने अपने अज्ञातवास का समय राजा विराट की नगरी विराटपुरी में बिताया था जिसको लोग वर्तमान समय में हरगाँव के नाम से जानते हैं।प्रसिद्ध माँ शन्नो देवी मन्दिर के साथ ही वहां से कुछ दूरी पर ही महा भारत कालीन शमी का वृक्ष भी है। कहा जाता है इसी वृक्ष पर अज्ञातवास के समय अर्जुन ने अपना धनुष गांडीव तथा पांडवों ने अपने अस्त्र-शस्त्रों को छुपाया था। बताते हैं कि इस वृक्ष की विशेषता है कि इसकी छाया एक ही दिशा में रहती है सूर्य चाहे जिस दिशा में हो।
ज्ञातव्य हो कि सूर्यदेव की पत्नी संज्ञा देवी अपने पति का तेज सहन न कर पाने के कारण अपने शरीर की छाया से अपने समान एक देवी को उत्पन्न किया जो छाया देवी कहलाई।इसके बाद अपने पुत्र यम और पुत्री यमी (यमुना) को सूर्यलोक में छोड़कर तपस्या हेतु चली गयी।कालांतर में सूर्यदेव तथा छाया देवी से शनिदेव का जन्म हुआ।शनि देव की माँ होने के कारण इनका एक नाम शन्नो देवी भी है !
माँ शन्नो देवी के सातों वार अलग- अलग स्वरूप होते हैं लेकिन विशेषत: शनिवार के दिन भक्त शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए और शनि दोष के निवारण के लिए मां शन्नो देवी को पूजते हैं।
मन्दिर के पुजारी ने बताया कि पांडव अपने अज्ञातवास के समय अपना राज्य पाने के लिए प्रतिदिन इनकी पूजा करते थे।द्रोपदी अज्ञातवास के समय जब राजा विराट की रानी सुदेष्णा की सेवा में थी तो प्रतिदिन उनके साथ इनकी आराधना करने आती थी। एक दिन जब वह वापस लौट रहीं थी तभी कीचक नामक राक्षस की कुदृष्टि उन पर पड़ी,और वह कामांध हो गया था जिस कारण भीम ने उसका वध करके जमीन में दबा दिया था, यह स्थान भी हरगांव में स्थित है और लोग उसे आज दानव टिल्ला नाम से जानते हैं।
मंत्र
ॐ शन्नो देवी रभिष्टय आपो भवन्तु पीपतये शनयो रविस्र वन्तुनः।
उपरोक्त मंत्र से भी शन्नो देवी की प्रमाणिकता सिद्ध होती है।मान्यता है कि इस मंत्र का जाप करने से शनि की साढ़े साती का बुरा प्रभाव कम हो जाता है। इसके अलावा नगर पंचायत हरगांव के क्षेत्र में प्राचीन सूर्यकुंड तीर्थ एवं गौरीशंकर भगवान भोले नाथ का सिद्धि प्राप्त स्थान है जो लोगों की आस्था का केंद्र बिंदु बना हुआ है।
दैनिक राष्ट्रसाक्षी
No comments:
Post a Comment